Chapter 3: उलझनों की पहली सीढ़ी मुंबई की गलियाँ और ट्रैफिक जितना बाहर शोर मचाते हैं, उससे कहीं ज़्यादा अंदर की ज़िन्दगियाँ चुपचाप उलझी होती हैं। आरव और काव्या के बीच की दोस्ती अब एक अलग मोड़ पर पहुँच चुकी थी — वो एक-दूसरे को महसूस करने लगे थे, समझने लगे थे, पर बयां करने से डरते थे। एक शाम, जब शूट के बाद सब थक कर जा चुके थे, काव्या ने आरव से पूछा, "कभी सोचा है तू क्यों लिखता है?" आरव ने हल्की मुस्कान के साथ जवाब दिया, "शब्दों में जो बात कह सकता हूँ, वो ज़ुबान