नफरत से बना तावीज.....अब आगे...........अदिति के बेहोश होते ही तक्ष उसके पास जाता है .....तक्ष के चेहरे पर एक शैतानी हंसी आ गई.....तक्ष : अब बस अदिति....आज तो मुझे ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी.....तक्ष अदिति के हाथ को उठाकर अपने नुकीले दांतों से दबा देता है.....तक्ष अदिति के खून से अपनी प्यास बुझाता है..तभी दरवाजे पर किसी के खटखटाने की आवाज आई....." अदिति दरवाजा खोलो मैं हूं विवेक..."...तक्ष गुस्से में बड़बड़ाता है....." इसे भी अभी आना था...." तक्ष अदिति को छोड़कर खिड़की से बाहर कूद जाता है...काफी देर दरवाजा खटखटाने के बाद अंदर से कोई जबाव नहीं आता तब विवेक