रीमा - भाग 3

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अब रीमा की ज़िंदगी में एक नई परिपक्वता आ चुकी थी।पूरे हफ्ते वो सामान्य ज़िंदगी जीती — काम, दोस्तों की मुलाकातें, किताबें, कभी-कभी अकेली शामें।मगर जैसे ही शनिवार आता…शाम ढलते ही रीमा का कमरा बदल जाता —उसकी आँखों में अलग चमक आ जाती, बदन की चाल में एक नर्मी, और होंठों पर एक ख़ामोश आमंत्रण।शनिवार, रात 8:30 बजे –आज रीमा ने सिर्फ़ एक मेहमान बुलाया था — राहुल, एक शांत और गहरा इंसान, जो कुछ समय से उसकी ज़िंदगी में लगातार आ रहा था, लेकिन कभी रीमा की हदों को पार नहीं करता।राहुल:"तुम हर शनिवार कुछ और लगती हो… जैसे