काली किताब - 9

कुछ हफ्तों बाद, वरुण की ज़िंदगी फिर से सामान्य दिखने लगी थी। लेकिन भीतर ही भीतर, एक अजीब सा खालीपन उसके दिल में घर कर चुका था। जब रात को वह सोने जाता, तब अक्सर उसे उन जले हुए पन्नों की महक, हवेली की टूटी दीवारों से आती ठंडी हवा, और परछाइयों की सरसराहट महसूस होती थी।  एक शाम, जब वह अपनी बालकनी में बैठा चाय पी रहा था, तभी उसके दरवाज़े पर दस्तक हुई। वरुण ने चौंककर घड़ी देखी—रात के ग्यारह बजे कोई आने की उम्मीद नहीं थी।  सावधानी से उसने दरवाज़ा खोला। बाहर कोई नहीं था। बस नीचे एक छोटा-सा