भाग 5: इक़रारआरिफ़ और ज़ोया एक दूसरे को देखते रहे, उनकी आँखें उनके दिल की दास्तान बयाँ कर रही थीं। आरिफ़ ने आगे बढ़कर ज़ोया का हाथ अपने हाथों में लिया। उसके लम्स से दोनों के दिलों में एक लहर सी दौड़ गई।"ज़ोया," आरिफ़ ने आहिस्ता आवाज़ में कहा, "मैं... मैं तुम्हें कभी नहीं भूल पाया। मेरी ज़िंदगी का हर लम्हा तुम्हारी यादों से मामूर रहा।"ज़ोया की आँखों से अश्क बहने लगे। "आरिफ़," उसने भरे गले से कहा, "मैंने भी तुम्हें कभी नहीं भुलाया। तुम... तुम मेरी पहली और आख़िरी मोहब्बत हो।"उनकी खामोशी में भी एक दूसरे के लिए बे-पनाह