मुलाक़ात - एक अनकही दास्तान - 6

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जैसलमेर की हवाएं उस दिन कुछ ज़्यादा ही उदास थीं। जैसे रेत के कणों में भी एक दर्द समाया हो, और हवाओं में एक बिछड़ते लम्हे की गूँज हो।आदित्य ने सुबह उठते ही फैसला कर लिया था—अब और नहीं। जितना वो संयोगिता को समझने की कोशिश करता, उतना ही उलझता चला जाता। और अब, उसे खुद को बचाना था।"शायद प्यार सिर्फ पाने का नाम नहीं होता..." उसने खुद से कहा था।लेकिन जाने से पहले वो एक बार और उससे मिलना चाहता था—बस एक आख़िरी बार। न कोई शिकायत, न कोई उम्मीद। सिर्फ एक विदा, जो बिना कहे अधूरी लगती।शाम ढलने