यह कहानी है आदित्य की—एक ऐसे छात्र की जो M.A. English की डिग्री की यात्रा पर तो निकला था, लेकिन उसकी नाव ज़्यादातर समय Wi-Fi की लहरों पर ही हिचकोले खाती रही। किताबों की खुशबू, लाइब्रेरी का सन्नाटा और प्रोफेसरों की व्याख्याएं उसके लिए उतनी ही दूर की चीज़ थीं जितनी Shakespeare की अंग्रेज़ी एक आम BA पास के लिए।आदित्य का असली रिश्ता किताबों से कम और PDFs से ज़्यादा था। उसका लैपटॉप एक चलता-फिरता साहित्य संग्रहालय था—सिर्फ़ अंतर यह था कि वहां ‘The Waste Land’ का पहला पन्ना भी कभी नहीं खुला था, लेकिन फ़ोल्डर में उस पर 7