कमरे में एक गहराई सी खामोशी थी। सिर्फ दो लोगों की साँसों की आवाज़ें — धीमी, भारी और एक-दूसरे में उलझी हुई।मीरा अब रणविजय की बाँहों में थी, और रणविजय उसके बेहद करीब। उनके बीच की दूरी जैसे खुद हवा ने भी खत्म कर दी थी। मीरा की साँसें अब तेज़ चलने लगी थीं, लेकिन डर से नहीं…ये एक नई अनुभूति थी — किसी के इतने पास आने की, किसी को इतने हक से छू लेने की।रणविजय ने मीरा की आंखों में देखा जैसे किसी बात पर मीरा की सहमति मांग रहा हो, मीरा ने आंखों ही आंखों में वो