मुलाक़ात - एक अनकही दास्तान - 5

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सूरज अपनी अंतिम किरणों को धरती पर बिखेरते हुए धीरे-धीरे क्षितिज की ओर ढल रहा था। जैसलमेर की सोनाली रेत पर पसरी वह शाम मानो किसी पुराने प्रेमगीत का अंतिम अंतरा हो, जिसमें हर साया एक कहानी कहता हो। गढ़ीसर झील के किनारे बहती ठंडी हवा, पानी की सतह को छूकर लौटती तो ऐसे लगती जैसे कोई खोई हुई याद हल्के से मन को सहला रही हो।झील का पानी चाँदी की परत की तरह चमक रहा था, और उसके किनारे फैले बबूलों की छाया में सिहरन सी थी, जो मन के भीतर तक उतर रही थी। उस ठंडी सांझ में,