खामोशियाँ भी कहती हैं

कॉलेज का पहला दिन था। बारिश हल्की-हल्की हो रही थी, और कैंटीन की खिड़की से आती बूंदें जैसे किसी अधूरी कविता का हिस्सा लग रही थीं।वहीं एक कोने में बैठा आरव, अपने चाय के कप में आँखें गड़ाए, सोच में डूबा था। वो पहली बार सिया को देख रहा था। "उसकी हँसी... जैसे किसी पुराने ख्वाब से निकलकर आई हो," आरव ने मन ही मन सोचा। वो चाहकर भी नज़रें हटा नहीं पाया। सिया हँसती थी, बात करती थी, दोस्तों के साथ मस्त रहती थी — और हर दिन उसके आस-पास बस एक नूर सा फैला रहता। आरव की मोहब्बत