मोहब्बत एक बदला - भाग 1 - 2

भाग 1: पहली निगाहमदरसे के सहन में, जहाँ बचपन की बेफिक्रियाँ रक़्स करती थीं, आरिफ़ की निगाहें अक्सर एक नूरानी चेहरे पर ठहर जाती थीं - ज़ोया। ज़ोया, अपनी हया और सादगी में बे-मिसाल थी। आरिफ़, जो अपनी खामोशी और कम-सुख़नी के लिए जाना जाता था, उसकी एक झलक पाने के लिए बेक़रार रहता। वह घंटों कुतुबखाने में किताबों के पीछे छुपकर उसे देखता, उसकी पुर-कशिश हँसी सुनने के लिए तरसता। लेकिन कभी यार-ए-जिगर न जुटा पाया कि दो लफ़्ज़ उससे कह सके।ज़ोया भी, अपनी निगाहें चुराती हुई, आरिफ़ की मौजूदगी को महसूस करती थी। उसकी संजीदगी और गहरी आँखें