अध्याय 1: प्रेम का पहला इनकारउस दिन उसने ज़्यादा कुछ नहीं कहा था।बस एक लाइन —“मुझे नहीं लगता कि मैं तुम्हारे लिए वैसे कुछ महसूस करती हूं।”इतना ही।पर उस लाइन के बाद जो चुप्पी आई,वो अब तक मेरे अंदर जिंदा है।(1) शुरुआत का भ्रमजब भी वो सामने आती थी,कुछ भी बोलने की ज़रूरत नहीं पड़ती थी।बस उसकी मौजूदगी ही इतनी साफ़ थीकि मैं हर बार अपने मन में वही स्क्रिप्ट लिखता —“शायद ये भी कुछ सोचती होगी। शायद ये भी थोड़ा उलझी होगी। शायद…”पर अब समझ आता है —वो सोच नहीं रही थी,मैं ही अकेला ख़्वाब में चल रहा था।(2) छोट