साया - 4

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सुबह की पहली किरण खिड़की से झाँकी तो अर्जुन अब भी वैसे ही ज़मीन पर बैठा था—थका, उलझा और उलझनों से टूटा हुआ। पिछली रात उसके लिए किसी बुरे सपने जैसी नहीं थी… वो हकीकत थी। और अब उसे यकीन हो चला था कि जो कुछ उसके साथ हो रहा है, उसका सीधा रिश्ता उसके अतीत से है।“क्या मैंने वाकई कुछ भुला दिया है?” वो बड़बड़ाया।कुछ जवाब चाहिए थे। और उसके लिए वो गया… उस पुराने स्टोर रूम में, जहाँ बचपन की चीज़ें रखी थीं। ये वही कमरा था जहाँ उसकी मां पुराने खिलौने, किताबें और सामान रख देती थीं।दरवाज़ा