साया - 3

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रात के दो बजे थे। अर्जुन अपने कमरे में लेटा हुआ था, लेकिन नींद उससे कोसों दूर थी। खिड़की से आती चाँदनी अब उसके लिए सुकून नहीं, बल्कि एक रहस्यमयी एहसास बन गई थी। हर परछाईं, हर आवाज़, अब उसे अजनबी लगने लगी थी। ऐसा लग रहा था जैसे दीवारों में भी कोई उसकी धड़कनें गिन रहा हो।पिछली रात हवेली में जो कुछ हुआ था, वो उसके दिमाग से जा ही नहीं रहा था। वो सिसकियों की आवाज़, वो अपने-आप खुलता दरवाज़ा… और वो शब्द—“मैं अब भी यहीं हूँ…”—उसके ज़हन में गूंज रहे थे।उसी सोच में डूबा था कि अचानक