साया - 2

रात के ठीक 12 बजे थे। अर्जुन की खिड़की से चाँद की हल्की रोशनी उसके कमरे में बिखरी पड़ी थी। सब कुछ शांत था, पर उस शांति में भी एक अजीब सी घुटन थी। हवा चल रही थी, मगर पत्तों की सरसराहट कुछ ज़्यादा ही डरावनी लग रही थी। अर्जुन अपनी किताबों के बीच सो गया था, पर उसकी नींद टूट गई—बिना किसी वजह के।उसने करवट बदली और आंखें मलते हुए उठ बैठा। कुछ अजीब था, बहुत ही अजीब। जैसे कमरे में कोई और भी मौजूद हो। उसने इधर-उधर देखा, सब वैसा ही था—कमरा, किताबें, टेबल लैम्प… लेकिन हवा में