में और मेरे अहसास - 124

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पतझड़   पतझड़ में मुरझाएँ हुए फ़ूलों को खिलाने की आश मत रखो l छोड़ कर जाने वालों की फ़िर से मिलाने की आश मत रखो ll   दूर जाने का फैसला किया है उस नादान नासमझ ने l जिद लिये हुए अडिग मन को हिलाने की आश मत रखो ll   वक़्त के साथ है तन्हाइयों का सफ़र तो सदियों से ही l मुसलसल लम्बी दरारों को सिलाने की आश मत रखो ll   सूखे पत्ते फ़िर ना हरे भरे होगे वो तो मिट ही गये l उसे खिलाने की कोशिश में झिलाने की आश मत रखो ll