ओ पल जो साथ थे

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आरा स्टेशन की भीड़ में एक लड़का अपने झोले को संभालते हुए बाहर निकल रहा था। सिर पर हल्की धूल जमा टोपी, पीठ पर झोला और आंखों में नए सफ़र की चमक। वो लड़का था – प्रेम सिंह। एक किसान परिवार से आया हुआ, बिहार के एक छोटे से गांव का होनहार लड़का, जिसे अपने सपनों को शब्दों में पिरोने की आदत थी। कविता, कहानी और किताबें ही उसका संसार थीं। और अब उसका नया ठिकाना था – वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय, आरा।हॉस्टल का कमरा मिला, जो दीवारों पर लिखे शेर-ओ-शायरी से भरा था। प्रेम मुस्कुराया – "शुरुआत सही जगह