सुख के दरवाजे से दुख का प्रवेश ! वर्ष 2005 और उसके बाद के दिन , तेजी से बदलते रहने वाले, सुख किंवा दुख के न भूलने वाले दिन | तो पाठक गण , शुरुआत सुख से भरे उन दिनो से की जाए या दुख भरे दिनों से ? इसके लिए सिक्का उछालूँ क्या ? 5 जुलाई 2005 – आज लखनऊ के मेरे दूसरे नव निर्मित मकान “पावन” का गृह प्रवेश और सहभोज हो रहा है | लखनऊ के महानगर