ब्रह्मवाक्य

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               न जाने कौन सा क्षण था वह; जब मंदिर में पंडितजी की सुनी हुई एक बात, ब्रह्मवाक्य बनकर मेरे मन में ऐसे बस गई कि मैं उसे जीवन भर न भुला सकी। आज जीवन के तीसरे पड़ाव पर भी वह बात मेरे जीवन का मूल मंत्र बनी हुई है, वैसे ही; जैसे जीवन के तीसरे पड़ाव पर भी शिवलिंग पर जल चढ़ाने का नियम उसी तरह निबाह रही हूं जैसे पहली बार प्रारंभ किया था। उस समय परिवार में इस नियम के प्रति मेरे आस्मिक निर्णय पर माँ को आश्चर्य भी हुआ था,