कुछ मोहब्बतें वक़्त से आज़ाद होती हैं।न समाज से डरती हैं, न नाम से जुड़ती हैं।ये कहानी भी वैसी ही है दो रूहों की, दो लड़कियों की जिन्होंने सिर्फ़ एक-दूसरे को चुना... एक ऐसे दौर में जब मोहब्बत, गुनाह समझी जाती थी।ये कहानी किसी सिखाने के लिए नहीं है बस सुनाने के लिए है,उन सभी दिलों तक पहुँचाने के लिए,जो अब भी धड़कते हैं,किसी 'शबनम' या 'शोला' के इंतज़ार में।”शबनम और शोला जहाँ पहली नज़र का जादू चलता है'साल था 1911। दिल्ली अपने पूरे शाही रंग में डूबी थी। विक्टोरिया टर्मिनस से लेकर लाल किले की