भाग 5 – विश्वास का द्वारआरव की आंखों के सामने विवेक खड़ा था। वही लड़का, जिसके साथ बचपन के सारे सपने जुड़े थे। वही, जिसने एक दिन उसे सबसे ज़रूरी वक्त पर छोड़ दिया था — बिना कोई कारण बताए, बिना पीछे मुड़े।"तू… तू यहाँ कैसे?" आरव की आवाज़ कांप रही थी।विवेक मुस्कराया, लेकिन उसकी मुस्कान में कोई गर्मी नहीं थी। "तुमने मुझे याद किया, इसलिए मैं आया। ये किताब सच्चाई को आकार देती है… और अब, तुम्हें मुझसे सामना करना है।"नायरा धीरे से पीछे हट गई। "ये द्वार केवल तुम्हारे लिए है, आरव। तुम्हें तय करना होगा — क्या