**"मायरा — अध्याय 3: राजकुमारी की छुपी प्यास"**---**स्थान:** मेवाड़ का महल **वर्ष:** 1891 **मैं, मायरा। इस बार शिकार एक पुरुष नहीं, बल्कि एक और स्त्री थी। लेकिन वो भी साधारण नहीं… एक राजकुमारी थी। रत्नों में सजी, पर भीतर से बेकल… मेरे लिए।**---उसका नाम था **राजकुमारी रतनप्रिया**।दुनिया के लिए वो संयम की देवी थी—शालीन, शांत, पवित्र। लेकिन उसकी आंखें कुछ और कहती थीं… वो चाहती थी स्पर्श… ऐसा जिसे कोई पुरुष नहीं दे सकता था। **ऐसी अनुभूति जो उसे सिर्फ एक और स्त्री ही दे सकती थी… और वो थी – मैं।**---हम पहली बार एक महफिल में मिले थे। वो मुझे घूर रही थी—मेरी कमर पर