खस से गोरखा तक का सफर

  • 822
  • 216

लेखक का उद्देश्यलेखक का मानना है कि प्राचीन काल के लोगों की पहचान धर्म या जाति से नहीं, बल्कि स्थान से की जाती थी। "खस" नाम भी कोई जाति या धर्म नहीं, बल्कि एक भौगोलिक स्थान की वजह से मिला नाम है। महाभारत जैसे प्राचीन ग्रंथ में खसों का जिक्र है। इतने प्राचीन लोगों का इतिहास मध्य काल से पहले के धूमिल है। शायद वह इतिहास भी नालंदा विश्वविद्यालय की आग में जल गया हो। क्योंकि मध्य काल से आज तक का खसों का इतिहास के साक्ष्य तो है इसलिए लेखक ने इतिहासकारों की किताबों, पुरातात्विक साक्ष्यों और जेनेटिक अध्ययनों