धीरे-धीरे जैसलमेर की वो पुरानी गलियाँ आदित्य के लिए सिर्फ शहर की गलियाँ नहीं रहीं। वे उसके दिल की कहानी बन गई थीं—और उस कहानी की सबसे खास कड़ी थी संयोगिता।दिन ढलते ही वे दोनों अक्सर रेगिस्तान की रेत पर बैठकर घंटों बातें किया करते। कभी ढोला-मारू की प्रेमकथा पर चर्चा होती, तो कभी संयोगिता आदित्य को लोकगीतों के मायने समझाती।आदित्य उसकी हर बात को महसूस करता, जैसे वह शब्द नहीं, कोई अधूरी कविता हो।"अगर मेरी कहानी के लिए नायिका चुननी हो..."उस दिन वे दोनों जैसलमेर के पुराने किले की सबसे ऊँची दीवार पर बैठे थे। सूरज धीरे-धीरे रेत के