मैं अगर आपसे पूछूं की प्रेम की क्या परिभाषा है?तो आपके उत्तर अलग अलग होंगे कई लोग नयी नयी परिभाषाएं देंगे। कोई कहेगा लगाव ही प्रेम है। लेकिन थोड़ा रुकिए और विचार कीजिए,की प्रेम क्या है? जो प्रेम मोती बनकर शब्दों की माला में पिर जाए वो सच्चा प्रेम नहीं। प्रेम किसी शब्द का मोहताज नहीं। प्रेम तो वो ओस की बूंद है जो अगर पुष्प पर गिर जाए तो शबनम बन जाती है । सरिता (नदी) सिंधु (समुद्र ) की व्याकुल बहाओ में लीन हो जाने के लिए दौड़त चली जाती है।रूपहली चाँदनी और सुनहरी रेशमिया सरिता की लहरों पर थिरक