अपनी आकाशवाणी की सेवा से वर्ष 2013 में निवृत्त होकर मैंने प्राय: लेखन और वाचन के लिए अपना शेष जीवन समर्पित कर रखा है | लेकिन इस कार्य में भी बाधाओं का आना जाना लगा हुआ है | कभी निजी जीवन की समस्या तो कभी समाज परिवार की |मनुष्य जीवन ही क्या जिसमें अवरोध न आने पाए ! पौरुष यह होना चाहिए कि बावजूद इसके आपका संकल्प ना डगमगाने पाए | पिछले दिनों मैंने ढेर सारी पुस्तकें पढ़ीं और पढ़ने के बाद उनकी अच्छी या बुरी समीक्षाएं भी लिख डालीं |उनके लेखकों