गांव और खेत खलिहान का आइना -पुस्तक -रामपुर की रामकहानी

  • 390
  • 105

      अपनी आकाशवाणी की  सेवा से वर्ष 2013 में  निवृत्त होकर मैंने प्राय:  लेखन और वाचन के लिए अपना शेष जीवन समर्पित कर रखा है |      लेकिन इस कार्य में भी बाधाओं का आना जाना लगा हुआ है | कभी निजी जीवन की समस्या तो कभी समाज परिवार की |मनुष्य जीवन ही  क्या जिसमें  अवरोध न आने पाए ! पौरुष यह होना चाहिए कि बावजूद इसके आपका संकल्प ना डगमगाने पाए |        पिछले दिनों मैंने ढेर सारी पुस्तकें पढ़ीं और पढ़ने के बाद उनकी अच्छी या बुरी समीक्षाएं भी लिख डालीं |उनके लेखकों