आरव और ज़ोया की ज़िंदगी धीरे-धीरे सामान्य होने लगी। अब ज़ोया पूरी तरह इंसानों जैसी दिखती थी—न कोई जादू, न कोई डरावनी घटनाएँ। आरव को लगने लगा कि सब कुछ ठीक हो गया है। लेकिन, कुछ चीजें अब भी अजीब थीं। ज़ोया को हमेशा ठंड लगती थी, चाहे मौसम कैसा भी हो। वह कभी शीशे के सामने ज़्यादा देर नहीं ठहरती थी। और सबसे ज़्यादा अजीब बात—जब भी कोई उसे छूता, तो उसे हल्की झुनझुनी महसूस होती थी। एक दिन, निखिल आरव के घर आया। "तो भई, अब तुम और तुम्हारी रहस्यमयी प्रेमिका कैसे हो?" निखिल ने मज़ाक किया। आरव हँसा। "अच्छे हैं।" निखिल ने ज़ोया