मैं - भाग 1

  • 786
  • 231

फिर एक दिन रोज की हे तरह बेकार कर दिया है। और न जाने कब तक में इसे हे बेकारी के इस बेबस संसार का हिस्सा होने वाला हु। न परहेज मुझे इस संसार से है बल्कि बेबस तो इस बात से हु कि मुझे खुद के ऊपर कोई भरोसा हे नहीं है। में वर्षों से इस कशमकश में हूं कि मेरे लिए क्या बना है या में किस चीज के लिए बना हु कुछ तो मिले जिससे में खुद को समझ सकूं। लेकिन शायद ये समझना या समझ पाना मेरे लिए उतना हे मुश्किल है जितना इस दुनिया में