यह मैं कर लूँगी - भाग 5

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(भाग 5) इस रोग का कोई उपचार न था। किंकर्तव्यविमूढ़-सा मैं बैठा रहा। जब खूब रो चुकी, मैंने कहा, पहले मैं भी अपनी बेटी के लिए इसी तरह रोता था। सालों साल रोया। लेकिन रोने से वह वापस नहीं मिली, मिली तो पत्रिका में और उसकी बदौलत अब तुम में आकर। सच कहता हूं, उस दिन तुम्हें कलेजे से लगाया तो लगा वह तुम में रूपांतरित हो गई है! यह तो अपना नजरिया है। तुम अपने पुत्र को पत्रिका में और न हो तो मुझ में पा सकती हो! कह कर भावनाओं के अतिरेक में मैंने उसे सीने से लगा