यह मैं कर लूँगी - भाग 3

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(भाग 3) एक दूसरे को शांतवना देते कुछ देर हम लोग सोफे पर बैठे रहे। उसके बाद वह उठी, आंसू सूख चुके थे पर उनका नमक चेहरे पर चिपका रह गया था इसलिए उसने अपना चेहरा धोया फिर तौलिए से पोंछने लगी। तब मैंने उठते हुए कहा कि- अच्छा चलूं!' तो उसने रुँधे गले से कहा, रुक जाइए... खाना बनाती हूँ।' और मुझे भी लगा कि होटल में जाकर खाने से तो अच्छा है, मैं यहीं खा लूं। दूसरी बात यह कि इससे यह भी खा लेगी, अन्यथा हो सकता है, भूखी रह जाए। क्योंकि दुख में भूख-प्यास नहीं लगती।