(भाग 2) अब मैं मन ही मन अक्सर उसकी तारीफ करता रहता। अगले टर्न पर यह हुआ कि मैंने आते ही एक पत्रिका उसे अलग से दे दी। तो उसका नतीजा यह निकला कि उसने रसीदें कल ले जाने को नहीं कहा बल्कि यह कहा कि- 'आप कुर्सी पर बैठ जाइए, मैं अभी भेज देती हूं।' और मेरे सामने ही बारकोड लगाकर बुक करने लगी। तब मैं उसके चेहरे पर आते-जाते ख्यालों को पढ़ता रहा कि घर में और कौन है? पति से इसकी कैसी पटरी बैठ रही है, या नहीं! यह कितनी संतुष्ट है? दुखी है, सुखी है...! इस