मन की गूंज, न सुनाई देती है कभी,पर यह भीतर से आती है, कभी चुपके से, कभी तीव्र।हर विचार, हर भावना, उसका एक स्वर होता है,जो कभी शांत, कभी हलचल में डूबा होता है। हम सबका मन, एक महल जैसा है,जहाँ पर विचारों का मेला होता है।हर विचार, एक आवाज़ है, जो गूंजती है भीतर,कभी सुख की, कभी दुख की, कभी शांति की, कभी बौछार की। मन की गूंज को समझ पाना सरल नहीं,यह अपनी राह खुद बनाता है, कभी चुप, कभी गूंजता है अनमिन।यह न तो किसी से छुपती है, न दिखती है बाहर,पर अंदर की दुनिया में, यह