मन की गूंज - भाग 1

हर सुबह की किरण में, अब हमें एक डर सा लगता है,नन्हीं आँखों में सवालों का अंधेरा सा झलकता है।हर हंसी में एक क़ीमत है, हर ग़म में एक ग़मगीन पल,लेकिन कभी किसी ने सोचा है, ये नन्हीं जानें क्यों रोती हैं पल-पल? हवाओं में, चाँद की रौशनी में, अब छुपा है दर्द,जिन्हें हम समझते थे मासूम, उनका बचपन हो गया मर्द।क्या हो गया है हमें, जो हम अपनी ही जड़ों से कट गए,नन्हें चेहरों को देख कर अब हम बस चुप हो गए। कभी बचपन में जो बातें हम करते थे बड़े प्यार से,वही बातें अब हमारे दिल को