दर्द.....

सब  फूल  ले  आये, मैं  काँटे  उठा  लाया रह जाते जो  राहों   मे  तो  किसी  अपने  को  चुभ  जाते.. बड़े  दीदार  के  साथ  आज  ' Rose Day'  पर  ग़ुलाब  को  हमने  हसीन  वादियों  मे  जाकर  ढूँढा  , ग़ुलाब  तो  सारे  ही  अच्छे  थे  मगर  ' चाँद  से  मुखड़े'  के  लिए  चाँदनी  जैसी  सौंदर्यता  चाहिए  इसलिए  थोड़ी  देर  लगी  ढूंढने  मे  आख़रकार  मिल  ही  गया  , जब  ग़ुलाब  लेकर  लाखों  सपनो  को  समेट  कर  हम  अपनी  महबूबा  के  पास  गए  तो  क़यामत  भरा  लम्हा  हमारे  आंखों  के  सामने  था  .... उनके  जुल्फो  मे  ग़ुलाब  था  और  मेरे  सामने  मेरा  टूटा  हुआ  ख्वाब  था...