### **अध्याय 1 – अधर्म की छाया** रात्रि का तिमिर गहन हो चुका था। आकाश में तारे बुझते-से प्रतीत हो रहे थे, और दिशाएँ भय से सिमट रही थीं। देवताओं के लोक में एक असहज सन्नाटा व्याप्त था। कैलाश पर्वत पर स्थित महादेव की जटाओं से मंद्र सरिता प्रवाहित हो रही थी, किन्तु प्रकृति के इस सौंदर्य के विपरीत, सृष्टि के संतुलन में कुछ विषमता आ चुकी थी। मृत्युलोक में त्रासदी का नया अध्याय आरंभ हो चुका था। भयंकर राक्षसों की एक नयी सेना जन्म ले चुकी थी, जो पहले से कहीं अधिक बलशाली और क्रूर थी। वे केवल रक्तपिपासु ही नहीं,