दो दिलों का मिलन - भाग 3

  • 321
  • 105

समय बीतता गया, और लोकेश और मुस्कान की मुलाकातें बढ़ती गईं। बाग अब सिर्फ एक स्थान नहीं था, बल्कि एक ऐसी जगह बन गई थी, जहाँ उनके रिश्ते ने धीरे-धीरे अपनी जड़ें मजबूत करना शुरू किया था। दोनों एक-दूसरे से और भी करीब होते जा रहे थे, और उनकी बातचीत अब सिर्फ समस्याओं तक सीमित नहीं थी, बल्कि वे अपने सपनों, इच्छाओं और भविष्य के बारे में भी बात करने लगे थे।एक शाम, जब सूरज धीरे-धीरे अस्त हो रहा था और बाग में हल्का सा सर्द मौसम था, लोकेश और मुस्कान बेंच पर बैठे हुए थे। उनके चारों ओर बाग