अर्चना का आंदोलन अब अपने चरम पर था। समाज में कई बड़े बदलाव हो चुके थे, लेकिन अर्चना जानती थी कि जब तक हर महिला को उसका अधिकार नहीं मिल जाता, तब तक उसकी यात्रा समाप्त नहीं हो सकती। उसने इस बार अपने संघर्ष को और भी व्यापक बनाने का फैसला किया।संघर्ष का नया मोड़अर्चना ने अपनी सोच को और बड़ा किया और यह समझा कि समाज में बदलाव के लिए शिक्षा और महिला सशक्तिकरण से भी बड़ा कदम उन लोगों को जागरूक करना था, जो कुप्रथाओं का पालन करते थे। सती प्रथा, दहेज प्रथा, बाल विवाह और अन्य कुप्रथाओं