चौबोली रानी - भाग 1

  • 654
  • 198

  अमावस्या की तिमिर भरी रात्रि में एक सुंदर बलिष्ठ पुरुष उज्जयिनी की वीथिकाओं में घूम रहा था. प्रहरी सजग, निष्ठापूर्वक अपने दायित्व का निर्वाह कर रहे थे. उनकी ध्वनि समय-समय पर नीरवता को भंग कर देती थी.वीथिकाओं में लगातार एक ही ध्वनी गूंज रही थी,"प्रजा सुख से सोये, सम्राट विक्रमादित्य के प्रहरी जाग रहे हैं" पुरुष ऊज्जयिनी की वीथिकाओं में घूमता रहा. सहसा उसे नगर के बाहर समीपवर्ती उद्द्यान में जाने की भावना जागी. वह नगर के प्रवेश द्वार पर पहुंचा. उसे प्रहरी का गंभीर स्वर सुनाई दिया - "कौन है, मध्यरात्रि में निरुद्देश्य क्यों घूम रहा है" युवक