आत्मा और शरीर में ज्यादा फर्क नही है पर शरीर रोता तब दुःख होता और आत्मा रोती तो तकलीफ अक्सर मनुष्य संवेदनशील प्राणी है ये कथन बहुत बार सुना पढ़ा, किंतु बहुत लोगों में संवेदनाय देखी नहीं, तो पुरी तरह सार्थक हुआ ये वाक्य अभी भी अतियोस्योक्ति पूर्ण ही नजर आता है,,"साहित्य व सिनेमा समाज का दर्पण है"" ऐसा तो हम सभी ही मानते है !अकेलेपन में जितना आनंद उतनी ही बैचनी, मूवी देखना कभी आदत नहीं बनी शायद भविष्य में बन जाय खैर.!!लम्बे समय के बाद एक मूवी मेरे सामने आई देखने से पहले सोचा की जरूर देखूंगी पर हां