"आहह" दर्द से कराहते माधव के मुंह से निकला। और अगले ही पल दरवाजा खुल गया। सामने सबसे आगे रमा ही खड़ी थी।"क्या हुआ....ये ...ये चोट " हथेली से बहते खून को देखते हुए रमा घबराकर बोली...हुम्म ये चोट क्या देख रही हो रमा..ये तो मामूली है..ठीक हो जाएगी...लेकिन जो चोट तुमने मेरे मन पर दी है..वो कभी ठीक नहीं होगी..कभी ठीक नहीं होगी..उसे गौर से देखते हुए माधव मन ही मन बोला"माधव जी...जल्दी चलिए डॉक्टर को दिखा देता हूँ"कहते हुए गौतम ने माधव के हाथ को पकड़ा ही था...कि माधव ने ये कहते हुए "जरूरत नहीं मामूली सी चोट