"बुआ जी...." आश्चर्य से माधव के मुँह से निकला..."मुझे मत कहो बुआ...भूरे ने हमें थोड़े दिन का सहारा क्या दे दिया था बदले में रमा को हथियाना चांहा...और तुमने भी वही किया... थोड़ा सहारा क्या दे दिया...बदले में तुम भी रमा को..."न....हीं ...बु....आ...जी...ऐसे मत कहिए..."ये शब्द सुनना माधव को असह्य लगा वो काँपते हुए तेज़ आवाज में बोला"चु...प रहो...ये बुढ़िया अनपढ़ जरूर है...लेकिन अंधी नहीं है" सुशीला चीख पड़ी।"मैं ...मैं आपको समझाता हूँ....""कुछ और समझने को बाकी बचा ही कहाँ है....सब तो पानी की तरह साफ है ...रमा मासूम है..उसने तो ये दुनियां उतनी भी नहीं देखी जितनी कि मैंने