..जुन्नूनियत..सी..इश्क.. (साजिशी इश्क़) - 8

...!!जय महाकाल!!...अब आगे...!!द्रक्षता अब शांत हो चुकी थी.....वोह अपने सामने खड़े सात्विक को देखती है.....जो उसे ही देख रहा था.....और उसके चेहरे पर तिरछी मुस्कान खिली हुई थी.....जो इस बात का प्रमाण थी.....इन सब से उसे बेहद खुशी मिल रही थी.....सुरुचि उसे पुकारती हैं:क्या हुआ बेटा द्रक्षता.....कहां खो गईं आप.....!!द्रक्षता उन्हें देख:कुछ नहीं.....आंटी जी.....!!सुरुचि मुस्कुराते हुए:अब मुझे आंटी कहने की कोई जरूरत नहीं.....अब से जो आप मान्यता को कह कर पुकारती है.....उसी से हमे भी पुकारेगी.....तो मुझे अच्छा लगेगा.....नहीं तो मैं बुरा मान जाऊंगी.....!!(वो अपना मुंह फूला लेती है)द्रक्षता उनके ऐसे मुंह फुलाते देखती है.....तोह उसके चेहरे पर भी मुस्कान