मैं तो ओढ चुनरिया 65 65 मायके में पहले तीन दिन कैसे बीत गए , पता ही नहीं चला । वक्त रेत की तरह मुट्ठी से फिसल रहा था । जब दो दिन की छुट्टियां बाकी रही तो इन्होंने कहा – अपना अटैची तैयार कर लो । कल सुबह की गाङी से हमें वापस चलना है । सुन कर ऐसा लगा , जैसे किसी ने स्वर्ग से बाहर निकल जाने का आदेश सुना दिया हो । मैं गुमसुम हो कुर्सी पर बैठ गई । क्या हुआ , मैंने कहा ,पैकिंग शुरु कर लो और