भारत की रचना - 14

 भारत की रचना/ धारावाहिकचौदहवां भागसमय का पंछी लगातार उड़ता ही रहा.            रोजाना सूरज निकलता, नये दिन को जन्म देता, फिर शाम ढलती, रात बीतती और सृष्टि का चक्र चलता ही रहता. रचना के दिन इसी आस और उम्मीदों में व्यतीत हो रहे थे. भारत उससे एक दिन मिलकर, फिर शीघ्र ही वापस आने की बात कहकर गया था; पर वह अभी तक वापस नहीं आया था. जब से रचना की उससे आख़िरी भेंट हुई थी, तब से लगभग तीन सप्ताह व्यतीत होने जा रहे थे, परन्तु अभी तक भारत के लौटने के कोई भी आसार नज़र नहीं आ रहे थे.