..जुन्नूनियत..सी..इश्क.. (साजिशी इश्क़) - 5

...!!जय महाकाल!!...अब आगे...!!मंदिर...!!आज द्रक्षता के पापा और दादा जी की बरसी थी.....इसीलिए आज मान्यता और द्रक्षता मंदिर जाकर.....पंडित जी को अन्न और वस्तु का दान कर रही थी.....अभी वो दोनों दान में बिजी थी.....जब एक बुजुर्ग महिला जो कब से द्रक्षता को देखे जा रही थी.....वोह अपने साथ खड़ी मध्य उम्र की महिला.....जो उनकी बहु थी.....उनसे बोली:सुरुचि.....हमें ऐसा लग रहा है.....कि इन्हें हम जानते है.....लेकिन याद नहीं कर पा रहे.....!!सुरुचि भी उनकी बात से सहमत होते हुए:हां.....मां.....मुझे भी तब से यही लग रहा था.....!!द्रक्षता की नजर अनायस ही उन पर चली गई.....जब उसने उन्हें अपने आप को देखते हुए पाया.....तो