में और मेरे अहसास - 115

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जुबान खामोश हैं पर कलम बोलती हैं l हृदय में उठते लब्जों को खोलती हैं ll   दिल की बात सुनके दिल की कहतीं है l वो सदाकत का साथ देकर डोलती हैं ll   उमड़ते भावों ओ उर्मि को किताबों में l लिखने से पहले शब्दों को मोलती हैं ll   खुद ही न्यायालय की खुर्शी में बैठकर l न्याय को लिखते वक्त अक्षर तोलती हैं ll   अपने अरमान और जज्बातों को लेकर l ही बेज़ान कोरे काग़ज़ को टटोलती हैं ll  १६-११-२०२४    नाराज है पर इतना मलाल नहीं हैं l आँखें रोने की बजह से लाल