अपराध ही अपराध - भाग 54

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अध्याय 54   “भगवान, मिट्टी…मैं तो सोचता हूं भगवान जो एक सुंदर कल्पना है। ऐसी एक शक्ति सचमुच में हो तो हमने जिन भगवान की मूर्तियों को विदेश में बेच दिया तो, वह हमें जलाकर भस्म कर दिये होते।” “आपको इस पर विश्वास नहीं हो सकता, परंतु मेरे लिए तो भगवान आप ही हो।” “तुम्हारे विश्वास की मैं प्रशंसा करता हूं। मैं अभी एक जगह नहीं हूं; वह भी दूसरे देश में हूं। कोल्लिमलाई में जाकर छुपने के लिए मेरे पिताजी के साथ रहूंगा।” “फिर मैं आपसे कैसे मिलूंगा?” चंद्र मोहन जल्दी-जल्दी से लिखकर दे रहे थे उसे संतोष वैसा