अपराध ही अपराध - भाग 27

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अध्याय 27   पिछला सारांश: धनंराजन ने उसे दिए दूसरे असाइनमेंट की मूर्ति जिसे कृष्णराज ने कीरन्नूर के मंदिर से चुराई थी उस नटराज की मूर्ति को मंदिर में ले जाकर रख दिया। इस काम को नहीं करने देना है इसलिए बहुत रुकावट विवेक ने उत्पन्न किया पर काम हो जाने से वह बहुत गुस्से में आ गया। अगली बार धनंजयन को अच्छा पाठ पढ़ाना पड़ेगा ऐसा उसने फैसला किया। दूसरा असाइनमेंट के पूरा होते ही बहुत प्रसन्न होकर कार्तिका ने धनंजयन की तारीफ की। आंखों आंसू के साथ धनंजय को कार्तिका ने देखा। स्पीकर फोन में बात करने की