इश्क जैसा कुछ नहीं - 3

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विश्नव और आचमन शरार्थ को घर लेकर जाने लगते हैं तभी आबिद उन्हें ठहरने के लिए कहता है आगे:-आचमन गुस्से से - अब क्या है??? कब से तो कह रहे थे निकलो यहां से अब जा रहें हैं तो रोक रहे हो आबिद मुस्कान बरकरार रखते हुए - महाशय! अपना पर्स देने की कृपया करेंगे जरा.....आचमन बुरा सा मुंह बनाकर अपना पर्स निकाल कर दे देता है आबिद शरार्थ के सामने जाकर अपनी पॉकेट से शरार्थ का दिया हुआ कार्ड निकाल पर्स में डाल देता है और उसमें से दो हजार का नोट निकाल लेता है और शरार्थ का गाल थपथपा