मैं मंच हूँ

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  **मैं मंच हूँ**  मैं मंच हूँ, जो कई मंच जीवियों का अड्डा है। वैसे आजकल मैं मंच कम और अड्डा ज्यादा हो गया हूँ, अखाड़ा भी कह सकते हैं। मैं अपने शहर का इकलौता सार्वजनिक मंच हूँ, सार्वजनिक भागीदारी से ही बना हूँ। मजदूर के पसीने को ठेकेदार की मिलावट के चूने और सीमेंट में घोलकर बनाया गया है। जल्दी ही शायद पुरातत्व विभाग की नज़र मुझ पर पड़े और मुझे शहर की इकलौती पुरातात्विक धरोहर घोषित कर दे। मेरे पास ही एक खाली मैदान आवंटित कर दिया गया था। पास के मकान वालों ने अपनी 'वसुधैव कुटुंबकम्' की